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संगीत होता है धर्मातीत : Sangeet Hota hai Dharmateet

Sangeet Hota hai Dharmateet
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कहते है संगीत की एक ही भाषा होती है ,बस, एक ही परिभाषा होती है। संगीतकार का संगीत के साथ एकाकार हो जाना और उसी की सुर-लय-ताल में खो जाना। आओ हम कुछ गुनगुनाए। बहोत सुन्दर !क्योंकि गायन मेरा पसंदीदा विषय है ओर गाने का मुझे शौक भी है।

भले ही गायकी कोई विशेष ना हो लेखन मेरा विशेष हो पर मैने स्वयं अनुभव किया है,जब भी मन उदास हो या किसी बात से विचलित हो या फिर शारीरिक अस्वस्थता आदि – आदि में हो बस गुनगुनाने लग जाता हूँ और कुछ ही समय में मेरे सारे दुःख दर्द गायब हो जाते हैं ।

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वह मन इतना आनंदित हो जाता है कि गुनगुनाते हुए आनंद की लहरो पर उमड़ते मेरे भाव कब एक गीत मे परिवर्तित हो जाते हैं उसका पता ही नही चलता ओर तब मन को जो खुशी प्राप्त होती है उसे शब्दों में बताया नही जा सकता बल्कि उसे महसूस किया जा सकता हैं तो जब भी मन करे, हम गाये, गुनगुनाए ओर अपने साथ वाले व वातावरण को खुशनुमा बनाए ।

कहते है की हमारी जुबा ही नहीं, चमकती आँखें भी गुनगुनाती है जब अन्तर मन मे आनन्द की तरगें हिलोरें खाती है। अबोध बच्चे की मुस्कान ही तो है संगीत की मस्त मस्ती जो स्वाभाविक, नैसर्गिक खुशी की परिभाषा दर्शाती है , आनन्दित बनकर जो अपने दिल से गाता है, गुनगुनाता है, उसका मन खुशियों के मधुर स्वाद से भर जाता है ।

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इसलिये जब कभी तुम्हारा मन हो जाए निराश और उदास तो सीख जाओ भरना उसमें संगीत की सुखद सुवास और मन का मधुरिम मीठास क्योंकि संगीत का कोई धर्म नहीं होता कोई मजहब नहीं होता और अलग-अलग मजहब में सुर-लय- ताल का भी अलग-अलग मतलब नहीं होता। इसलिये उसी को संगीत कहते हैं उसी को वास्तव में संगीतमय गीत कहते हैं।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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