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रिक्शा वाले के बेटे ने बनाई , बिना हाथ लगाए कचरा उठाने की मशीन राष्ट्रपति से पा चुके हैं पुरस्कार

sikanto mandal swachhta cart
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आइए पढ़ते हैं इनोवेशन की एक नई कहानी,  यह कहानी है मथुरा के रहने वाले सिकांतो मंडल की, इन्होंने स्वच्छता को महत्व देते हुए एक ऐसी आविष्कार  कूड़ा बीनने वाली मशीन तैयार की है और अपने इस कार्य के लिए उन्होंने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से पुरस्कार भी प्राप्त किया है।

सिकांतो मंडल का मूल स्थान उत्तर प्रदेश का मथुरा शहर है,सिकांतो मंडल ने वर्ष 2016 में कूड़ा बीनने वाली एक मशीन तैयार की है जिससे कूड़े को बिना हाथ लगाए आसानी से उठाया जा सकता है और उन्होंने इस मशीन का नाम ‘स्वच्छता कार्ट’ रखा है।

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सिकांतो मंडल द्वारा तैयार की गई यह कूड़ा बीनने वाली मशीन खराब साइकिल से तैयार की गई है जो बिना हाथ लगाए कूड़ा उठाने में सक्षम है। इस डिजाइन को तैयार करने के बाद सिकांतो मंडल जापान जाने का मौका तो मिला है इसके साथ ही साथ उन्हें अक्षय कुमार और अन्य कई बड़ी हस्तियों ने 5 लाख रुपए भी दिए जा चुके हैं।

परंतु ‘स्वच्छता कार्ट’ तैयार करने वाले सिकांतो मंडल की जिंदगी आज काफी कठिन है और उनकी आंखों के सामने पूरा अंधेरा छाया हुआ है आइए जानते हैं सिकांतो मंडल की पूरी कहानी।

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इस प्रकार प्राप्त हुई ‘स्वच्छता कार्ट’ तैयार करने की प्रेरणा

सिकांतो मंडल अपनी पढ़ाई के बारे में बताते हुए कहते हैं कि फिलहाल तो वह मथुरा के एक निजी कॉलेज में बीएससी कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई कर रहे हैं। इस दौरान वह कहते हैं कि वह मूल रूप से पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद के रहने वाले हैं, परंतु जब वह काफी छोटे थे तब उनके पिता काम की तलाश में मथुरा आ गए थे।

सिकांतो मंडल कहते हैं कि बात वर्ष 2016 की है इस वक्त मैं कक्षा 9वी में पढ़ता था वह स्कूल एकदम एक गुरुकुल के जैसा था और यहां बच्चों को मुफ्त में पढ़ाया जाता था वह कहते हैं कि हम सभी नीम के पेड़ के नीचे पढ़ते थे और साफ सफाई का पूरा ध्यान वहां पढ़ने वाले बच्चों को ही रखना पड़ता था।

इस दौरान सिकांतो मंडल आगे बताते हैं कि कुछ बच्चे कपड़ों के गंदे होने के चलते स्कूल की साफ सफाई में हिस्सा नहीं लेते थे और यही बात मेरे मन में बैठ गई और मैंने सोचना शुरू किया क्यों ना कुछ ऐसा तैयार किया जाए जिससे कूड़ा हाथ से ना उठाना पड़े परंतु उनके परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी बेहतर नहीं थी कि वह इस तरह का कुछ निर्माण कर पाए और इस पर पैसे खर्च कर सके।

इस प्रकार तैयार की ‘स्वच्छता कार्ट’

सिकांतो मंडल बताते हैं कि मेरे पिता घर का आर्थिक खर्चा उठाते थे और इसके लिए वे रिक्शा चलाते थे और कंट्रक्शन साइट पर मजदूरी का काम भी किया करते थे।

मेरी माता की सेहत अच्छी नहीं रहती थी और हम किराए के घर पर रहते थे और इस तरह सारी परिस्थितियों को देखते हुए घर से मुझे अपने डिजाइन के लिए पैसे मिलना काफी मुश्किल था।

इस दौरान वह बताते हैं कि मैंने अपने एक टीचर से इसकी बात की और उन्होंने मुझे कागज पर डिजाइन को तैयार करने के लिए कहा।

सिकांतो मंडल कहते हैं कि फिर मैंने कागज पर एक डिजाइन तैयार किया और अपने टीचर को दे दिया वह कहते हैं कि मेरे इस डिजाइन से टीचर काफी प्रभावित हुए और उन्होंने मुझे स्कूल स्तर पर होने वाले इंस्पायर अवार्ड प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए काफी प्रेरित किया।

स्कूल में होने वाली इस प्रतियोगिता को भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा आयोजित किया जाता है। स्कूल में संकेत के मॉडल ने  सभी लोगों ने काफी प्रभावित किया इसलिए स्कूल की तरफ से उसे 5 हजार इस मॉडल को तैयार करने के लिए दिए गए थे।

कबाड़ का इस्तेमाल करके तैयार की ‘स्वच्छता कार्ट’

सिकांतो कहते हैं कि उन्होंने अपना पहला मॉडल कबाड़ के द्वारा तैयार किया था जिसमें उन्होंने लकड़ी ,पुरानी बेंच, साइकिल के ब्रेक, ग्रिप और वायर का इस्तेमाल करके अपने पहले मॉडल को तैयार किया था , सिकांतो के इस मॉडल को ही जिला स्तर पर इंस्पायर अवार्ड लिए चुना गया था।

सिकांतो कहते हैं कि इस मॉडल में फिर भी कुछ कमी थी क्योंकि कचरा तो बिना हाथ लगाए आसानी से उठाया जा रहा था परंतु कचड़ा को गिराने के लिए हमें इस में  कुछ और सोचने की आवश्यकता थी।

फिर मैंने कुछ ऐसा सोचा क्यों ना ‘स्वच्छता कार्ट’ नीचे से अपने आप खुल जाए और सारा कचरा गिर जाए इस इस दौरान ना कचरा उठाने के लिए हाथ लगाने की आवश्यकता होगी और ना ही कचरे को गिराने के लिए हाथ लगाने की आवश्यकता होगी।

इस दौरान वह कहते हैं कि मैंने इस मॉडल की सारी कमियों को पूरा कर दिया और फिर इसे लखनऊ में राज्य स्तर पर पेश किया जहां पर चुने जाने के 1 महीने के बाद ही उन्होंने राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भी हिस्सा लिया जहां कुल टॉप 60 बच्चों का सिलेक्शन किया गया था जिसमें से एक सिकांतो भी थे।

इस दौरान वह कहते हैं कि चुने गए 60 बच्चों के साथ-साथ मुझे भी जापान जाने का मौका मिल रहा था परंतु उस वर्ष पासपोर्ट ना बनने के कारण मैं नहीं जा पाया इसके बाद 2018 में मुझे पुनः जापान जाने का मौका मिला और उस दौरान हम जापान में 1 महीने रहे और कई तरह की टेक्नोलॉजी  को देखा।

राष्ट्रीय भवन में 3 दिन गुजारने का मिला बड़ा मौका

सिकांतो बताते हैं कि जापान की यात्रा से पहले उन्हें 3 दिन राष्ट्रीय भवन में रहने का मौका मिला था और इस दौरान उन्होंने काफी कुछ सीख लिया था। इस समय ही उन्होंने अपने तैयार किए गए मॉडल के कारण पांच लाख रुपए का इनाम भी मिला था।

वह बताते हैं कि इस दौरान मेरी मुलाकात एक बड़ी कंपनी के फाउंडर से हुई थी उन्होंने मेरे द्वारा तैयार किए गए ‘स्वच्छता कार्ट’ को पेंट करने में मेरी मदद थी।

इस दौरान वह कहते हैं कि एक कंपनी ‘स्वच्छता कार्ट’ को बाजार में लाने के लिए तैयार थी परंतु करोना महामारी ने सब कुछ तबाह कर दिया और अभी तक उनका मॉडल बाजार में नहीं आ पाया है।

सिकांतो कहते हैं कि ‘स्वच्छता कार्ट’ का इस्तेमाल करने के लिए किसी भी तरह की बैटरी या फिर सौर्य ऊर्जा या डीजल की आवश्यकता नहीं है यह पूरी तरह से मनुष्य पर निर्भर है इसे काफी आसानी से चलाया जा सकता है।

सिकांतो द्वारा तैयार किया गया ‘स्वच्छता कार्ट’ भविष्य में कई लोगों को के लिए लाभकारी साबित हो सकता है।

लेखिका : अमरजीत कौर

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