मार्च 20, 2023

Motivational & Success Stories in Hindi- Best Real Life Inspirational Stories

Find the best motivational stories in hindi, inspirational story in hindi for success and more at hindifeeds.com

सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज फातिमा बीवी की कहानी

सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज फातिमा बीवी की कहानी

सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज फातिमा बीवी की कहानी

जैसा कि हम सब जानते हैं कि भारत के न्याय व्यवस्था की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट है, जिसे हिंदी में सर्वोच्च न्यायालय भी कहा जाता है। हमारे देश में न्याय व्यवस्था को कायम करने का काम न्यायपालिका के द्वारा ही कराया जाता है।

यही वह सर्वोच्च संस्था है जिसे हमारे संविधान में वर्णित सभी मौलिक अधिकारों का गारंटर भी कहा गया है और इस गारंटी को पूरा करने का काम सुप्रीम कोर्ट में बैठे जज की देखरेख में होता है।

सुप्रीम कोर्ट की स्थापना आजादी के बाद 1950 में की गई थी। जब सुप्रीम कोर्ट की स्थापना हुई थी तब से केवल 39 साल तक सिर्फ पुरुष ही इसके काम देखते रहे थे।लेकिन 1989 में पहली बार कोई महिला सुप्रीम कोर्ट के जज बनी थी। सुप्रीम कोर्ट की पहली पहली महिला जज बनी फातिमा बीवी, जो कि एक ऐतिहासिक घटना थी।

यह घटना भारत ही नहीं बल्कि पूरे एशिया के लिए ऐतिहासिक थी, क्योंकि ऐसा पहली बार हुआ था जब कोई महिला न्यायालय के सर्वोच्च जज के तौर पर काम कर रही थी।

यह भी पढ़ें :15 साल की उम्र में ₹300 के साथ छोड़ा था इस लड़की ने घर आज है 15 करोड़ का कारोबार

इसके पहले किसी भी महिला ने सर्वोच्च न्यायालय के सर्वोच्च जज के तौर पर काम नही किया था। जब फातिमा बीवी को सर्वोच्च न्यायालय का जज बनाया गया था तब देश की आबादी के लिए यह एक गौरवपूर्ण क्षण था।

कहा जाता है कि उस समय यह कहा जाने लगा था कि अब महिलाएं बेचारी बन कर न्याय की गुहार नहीं लगाएंगी बल्कि लोगों को न्याय दिला भी सकेंगी।

जब फातिमा बीवी को जज बनाया गया था तब उस समय तक भारतीय समाज में महिलाओं को आम बैठकों में बोलने का अधिकार भी नहीं था, लेकिन उस दौर में फ़ातिमा बेबी सर्वोच्च अदालत की जज बनाई गई थी।

परिचय

फातिमा बीवी का जन्म केरल के पथानामथिटा में 30 अप्रैल 1927 को एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। सौभाग्य से उनका जन्म एक ऐसे राज्य में हुआ था जिसे अभी तक भारत के सभी राज्य में सबसे साक्षर राज्य के तौर पर जाना जाता है। केरल की साक्षरता दर भारत के सभी राज्य में सबसे अधिक है।

यहां पर लिंगानुपात भी काफी अच्छा है और इसका प्रभाव उनके परिवार पर भी दिखाई देता मालूम पड़ रहा है। इनके पिता ब्रिटिश भारत में सब रजिस्ट्रार के पद पर तैनात थे। इनके घर में शुरू से ही पढ़ाई लिखाई का माहौल था।

धार्मिक शिक्षा के बजाय उनके पिता ने उन्हें आधुनिक शिक्षा दी थी। उस समय केरल में लड़कियों के लिए गिनी चुनी स्कूल और कॉलेज हुआ करती थी। फातिमा बीवी की विद्यालय शिक्षा कैथोलिक हाई स्कूल से हुई थी।

वहां पर उस वक्त उनके साथ सिर्फ 3 लड़कियां ही थी। जिसके बाद उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज त्रिवेंद्रम से स्नातक और अपनी एलएलबी की डिग्री हासिल की। एलएलबी की डिग्री हासिल करने के बाद किसी भी कोर्ट में वकील बनने के लिए बार काउंसिल की परीक्षा को पास करना पड़ता है।

इस परीक्षा में फ़ातिमा बीवी ने 1950 में भाग लिया और पहले प्रयास में वह सफल हो गई और उन्होंने परीक्षा में टॉप किया था और उन्हें इसके लिए गोल्ड मेडल से सम्मानित भी किया गया। उसके बाद वह 1958 में केरल के अधीनस्थ न्यायिक सेवा में मुंसिफ के रूप में नियुक्त हो गई।

यह भी पढ़ें :कम उम्र में खेती करने वाली यह बेटी आज पूरी परिवार को पाल रही है

वह किसी भी मामले में फैसला देने से पहले बारीक अध्ययन करती थी। 1972 में उन्हें मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट बनाया गया और 1974 में जिला एवं सत्र न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया।

इसके बाद 6 अक्टूबर 1989 को वह ऐतिहासिक दिन आया जब उन्हें सर्वोच्च न्यायालय में बतौर न्यायाधीश नियुक्त मिली थी।

उस समय भारत में राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। वह इस पद की सेवा से 24 अप्रैल 1992 में रिटायर हुई। उसके बाद वह मानवाधिकार आयोग में काम करने लगी।

फातिमा बीवी ने अपनी जिंदगी में कभी भी आराम नही किया और रिटायरमेंट के बाद भी अपनी योग्यता अनुसार जो भी काम कर सकती थी वह लगातार करती रही।

फ़ातिमा बीवी को 1997 में तमिलनाडु के गवर्नर बना दिया गया और तमिलनाडु के गवर्नर के पद पर वह साल 2001 तक रही। उनका निधन 92 साल की उम्र में हुआ था।

फातिमा बीवी की कहानी हर उस महिला के लिए प्रेरणादायक है जो किसी भी क्षेत्र में अपना सर्वश्रेष्ठ करके अपना एक मुकाम हासिल करना चाहती है।