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मूल्यवान निधि : Valuable Treasure

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आज के समय में पूछा जाये की सबसे मूल्यवान निधि क्या है ? तो प्रायः प्रायः यही उतर आयेगा कि सबसे मूल्य वान कोई है तो
वह हैं पैसा अगर पैसा है तो सब कुछ है नहीं तो कुछ नहीं । भौतिकता से चकाचौंध इस समय में इसी के इर्दगिर्द ही चिन्तन रहता है ।

अगर पैसे से ही सबकुछ मिलता तो उस व्यक्ति से पुछे जिसे सांस लेने में परेशानी हो रही है और उस माँ से भी जो इधर से उधर भगवान से विनती करने के लिए दौड़ी पर कुछ कर ना सकी, उस करोड़ों कमाने वाले से जो इतना पैसा होने के बावजूद भी अपने भाई आदि की जान ना बचा पाया क्योंकि असाध्य बीमारी ने उसको घेर लिया ।

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इसलिये पैसा ही सबकुछ नहीं है । हम जो मिल जाता है पुण्योदय से ,उसमें संतुष्टि का अनुभव न कर आपाधापी और दूसरे से जलन , कि उसके पास मेरे से ज्यादा कैसे हो गया, के नकारात्मक चिंतन से अप्रसन्न रहते है। तभी एक राजा ,एक धनाढ्य आदि से एक गरीब,फटेहाल और अकिंचन ज्यादा खुश रहता है प्रायः।

हम अपना स्टेटस दूसरों का कम करके करना चाहते हैं ,सारी उम्र इसमें गुजार देते हैं और नाखुश रहते हैं, हम अपना स्टेटस दूसरे से ज्यादा मेहनत करके, बढाकर नहीं करने की सोचते।

इतना ही नहीं, प्रायः देखा जाता है , जो सद्गुणों से भरपूर होता है ,उससे ग्रहण करने का चिंतन न बनाकर ,वो मेरे से ज्यादा कैसे निकल गया कि ईर्ष्या से नाखुश रहते हैं, हम आत्मावलोकन करे और जो पुण्योदय से मिला है, वो पर्याप्त है, अपने से नीचे को देखे की हमें पुण्योदय से संज्ञी पंचेन्द्रिय मनुष्यभव पाया है, इसका सदुपयोग करके हलुकर्मी हो, जिससे कर्ममुक्ति के नजदीक पहुंच सकें।

प्राप्त ही पर्याप्त है,सन्तोष परम् सुख है,खुशी का राज है । ज्ञानीजन कहते रहते हैं कि भौतिकता में शान्ति कभी नहीं मिलेगी और अगर मिलेगी तो अल्प समय के लिए शान्ति की भ्रान्ति ही मिलेगी इसलिये मनःशान्ति से आनन्ददायक कुछ नहीं है । जिसका मन आनन्द से सराबोर है तो सारी आत्मशक्ति का स्रोत भी वही हैं ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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