कहते है कि अपने जीवन में किसी भी समस्या को सुलझाने के लिए शान्त पर दृढ़ मन से सही चिन्तन-मनन करो । हमारे द्वारा सही चिन्तन व प्रयास आदि से हमको समस्या का समाधान अवश्य सामने दिखेगा व इच्छित लक्ष्य की प्राप्ति होगी ।
कर्मों का झरना, मन के धरातल पर निरन्तर प्रवाहित है। हर आत्मा का जन्म निश्चित है।हर आत्मा अपने पिछले जन्मों के कर्मों के अनुसार इस सृष्टि पर जन्म लेती है।
वह उसी क्रम में एक मनुष्य जीवन आता है। हमारा जन्म से लेकर मृत्यु तक का जीवन एक किताब की तरह होता है , जिसका पहला पेज मनुष्य का जन्म सूचक होता है और अंतिम पृष्ट इंसान की मृत्यु कहलाता है।
हमारा हर गलत-सही चिंतन,कर्मों की सत्ता से प्रभावित है लेकिन हम सारा दोष बेचारे अनुचर मन पर मढ़ देते है जबकी हमारे हर कृत्य का असली उत्तरदायी तो हमारा चित्त है। हम देखते है कि दुनिया का हर इंसान सुख चाहता है, दुःख कोई भी इंसान नहीं चाहता है ।
इंसान दुःख से डरता हैं इसलिए वह दुःख से छुटकारा पाने के लिए अपनी और से तरह-तरह के सही प्रयत्न करता है ।
हमारे जीवन में सुख और दुःख सदैव धूप-छाया की तरह साथ रहते हैं, हमारी लंबी जिन्दगी में खट्ठे-मीठे पदार्थों के समान दोनों का स्वाद हमको चखना होता है।
सुख-दुःख के सह-अस्तित्व को आज तक कोई मिटा नहीं सका है, हमारे जीवन की प्रतिमा को सुन्दर और सुसज्जित बनाने में सुख और दुःख हमारे आभूषण के समान है।
हमारे द्वारा सुख से प्यार और दुःख से घृणा की मनोवृत्ति ही अनेक समस्याओं का कारण बनती है, और इसी से हमारा जीवन उलझन भरा प्रतीत होता है।
अतः हमको इन दोनों स्थितियों के बीच संतुलन स्थापित करने की जरूरत है , और सदैव सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने का हमारा ध्येय हों ।
यदि हमारे को इष्ट में दृढ़ आस्था है तो हमको अपने जीवन का सही रास्ता जरूर मिलेगा तभी तो कहा है कि आस्था है तो रास्ता है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
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