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प्लास्टिक के कचरे से घर बना कर इन छात्रों ने बेसहारा जानवरों को दिया नया आशियाना

प्लास्टिक के कचरे से घर
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भारत के हर घर में कम या ज्यादा प्लास्टिक का कचरा जरूर निकलता है। लेकिन बेहद गिनती के लोग हैं जो इन प्लास्टिक के कचरे का सही ढंग से प्रबंधन कर पाते हैं।

ज्यादातर लोगों को प्लास्टिक के कचरे से कोई फर्क नहीं पड़ता और वे इसे यहां वहां पर एक देते हैं। जब अखबारों में बढ़ते प्रदूषण और तापमान की रिपोर्ट पर चर्चा की जाती है तो इसके लिए हम प्रशासन को जिम्मेदार ठहराते हैं।

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लेकिन वास्तविकता में प्रशासन से ज्यादा इसमें आम लोगों की भागीदारी होती है। यदि हर परिवार अपने स्तर पर प्लास्टिक के कचरे के निपटारे के लिए काम करें तो बड़े बदलाव आसानी से लाया जा सकता है।

अगर बड़े इसके लिए समय नहीं दे सकते हैं तो बच्चों को तो इसके लिए प्रेरित किया जा सकता है। और अक्सर देखा जाता है बच्चे कुछ ऐसा कर रहते हैं जो बड़े नहीं कर पाते हैं।

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कुछ ऐसा ही कमाल किया है नई मुंबई के रहने वाले बच्चों ने। इन बच्चों ने अपनी पहल से न सिर्फ प्लास्टिक के कचरे का सही प्रबंधन किया बल्कि बेसहारा और बेजुबान जानवरों के लिए एक छोटा सा घर भ8 बना दिया।

आज हम जानेंगे 18 वर्षीय वसुंधरा गुप्ता और उनके टीम की पहल के बारे में। जिनकी टीम ने प्लास्टिक की बोतलों से प्लास्टिक के 150 इको ब्रेक बनाकर बेसहारा जानवरों के लिए छोटा सा शेल्टर होम बनाया है।

वसुंधरा हमेशा से पर्यावरण के प्रति जागरूक रही हैं और अपने दोस्त खुशी साथ मिलकर उन्होंने 2019 में और वसुधा नाम का एक संगठन की शुरुआत की।

2019 में जब अमेजन के जंगलों में आग लगने की खबर आई थी तब यह बच्चे बेहद दुखी थे। तभी इन बच्चों ने फैसला किया कि पर्यावरण के लिए अपने स्तर से काम करेंगे।

इस पहल के तहत बच्चे हर हफ्ते कम से कम 5 पौधे लगाते हैं और उनकी देखभाल भी करते हैं। देखते ही देखते बेहद कम समय में उनकी टीम बढ़ने लगी।

आज उनकी टीम में कुल 8 लोग हैं जिसमें सिया गुप्ता, ओमकार शेनॉय, भविष्का मेंडोंसा, श्रावणी जाधव, ब्रैडन ज्यूल, श्लोका सिंह, राहिल जेठी, यस बड़ालाआयुष रंगरास जुड़े है।

यह सभी बच्चे हाल में ही 12 वीं की परीक्षा को पास की है और अब कालेज की दुनिया में जल्द ही कदम रखेंगे।

लोगों को किया जागरूक :-

पिछले साल साल 2020 में जब कोरोना वायरस महामारी की वजह से देशव्यापी लॉकडाउन लगा तब उनका काम रुक गया था। लेकिन जैसे लॉकडाउन में छूट शुरू हुई तो पिछले साल मुंबई में काफी ज्यादा बारिश हुई।

इन बच्चों ने देखा कि बारिश में बेसहारा बच्चे जानवर काफी परेशान हुए खास करके कुत्ते। क्योंकि लोग इन्हें अपनी सोसाइटी में आने नहीं देते हैं।

इसलिए उन्होंने प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन से जुड़ा काम करने के लिए सोचा। उन्होंने लोगों को बताया कि वे अपने घरों से निकलने वाले प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल करके ब्रिक बना रहे हैं।

लेकिन इसको लोगों तक पहुंचाना एक चुनौती थी। तब उन्होंने सोचा कि क्यों न इन ब्रिक से कुत्तों के लिए सेंटर बनाया जाए। जुलाई 2020 में उन्होंने अपने इस मुहिम की शुरुआत की।

टीम की सदस्य गुप्ता का कहना है कि प्लास्टिक कचरे का प्रबंधन अगर हम सही ढंग से करें तो इसका बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है।

इससे ईको ब्रेक बनाना प्लास्टिक का एक बेहतरीन समाधान है। यह कोई मुश्किल काम भी नहीं होता है। आप अपने घर के प्लास्टिक कचरे को एक प्लास्टिक की बोतल में भरते हैं।

जब प्लास्टिक की बोतल पूरी भर जाए तब ईंट की तरह मजबूत हो जाती है। फिर इस ब्रिक के द्वारा शेल्टर होम बनाए जा सकते हैं।

लेकिन इसके लिए एक-दो नहीं 150 इको ब्रिक की जरूरत होती है। अगर हर परिवार एक दो इको ब्रिक बनाता है तो महीने में कम से कम 1 से 2 ब्रिक बन जाता है।

इसके लिए उन्होंने मुंबई की अलग-अलग सोसाइटी में लोगों को जागरूक किया। सोसाइटी के लोग अपने घरों के प्लास्टिक कर चोरों को सोसाइटी में एक जगह नीचे रख देते थे। और फिर यह लोग इसे इकट्ठा करके इको ब्रेक बनाते थे।

बेसहारा कुत्तों के लिए सेल्टर :-

लगभग 11 महीने की मेहनत के बाद वसुंधरा अपने साथियों की टीम के साथ 45 किलोग्राम कचरे से इको ब्रिक तैयार किया। फिर उन्होंने सेल्टर हाउस के डिजाइन पर चर्चा की।

इसके लिए उन्होंने अच्छी गुणवत्ता वाले मटेरियल को लिया। जिससे उनका बनाया शेल्टर लोगों के लिए एक उदाहरण बने और दूसरे लोग भी प्रेरित हो।

उन्होंने इसके लिए लोहे का फ्रेम बनाया जिसमें पॉलीरेथेन फोम का भी इस्तेमाल किया। जिसकी वजह से सेल्टर के अंदर का तापमान संतुलित रहता है।

पूरा शेल्टर तैयार होने में लगभग 7500 का खर्चा आया। जिसे इन बच्चों ने अपनी पॉकेट मनी से इकट्ठा किया। उन्होंने स्थानीय पार्षद से मिलकर राजीव गांधी उद्यान में शेल्टर को लगा दिया।

इस सेंटर में तीन से चार कुत्ते आराम से बैठ सकते हैं। इन्हें किसी भी मौसम में इसमें परेशानी नहीं होगी।

लोगों ने बच्चों के इस प्रयास को काफी सराहा तथा दूसरे शहरों के लोग भी इस काम से प्रेरित हुए हैं। अब इनकी कोशिश ज्यादा से ज्यादा लोगों को रीसाइक्लिंग के लिए जोड़ना है।

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