ADVERTISEMENT
Lal Bahar Gram Pathshala

इंस्पेक्टर ने शुरू की लाइब्रेरी बनाने की पहल, 250 से अधिक गांव में खोली है लाइब्रेरी

ADVERTISEMENT

गनौली के ह्यूमन राइट्स इंस्पेक्टर लाल बहार ने अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर गांव में बच्चों को पढ़ाई के लिए एक अच्छा माहौल देने के लिए एक लाइब्रेरी खोली है, और आज उनका यह प्रयास इतना अधिक सफल हो गया है कि कई गांव में ऐसी लाइब्रेरी खोली गई है।

‘लाल बहार’ मूल रूप से गाजियाबाद के एक छोटे से गांव धनौली के रहने वाले हैं, और इसके साथ ही साथ लाल बहार नेशनल हुमन राइट्स कमीशन में एक इंस्पेक्टर के तौर पर कार्य करते हैं, इस दौरान वह कहते हैं कि मेरा यहां तक का पहुंचने का सफर काफी कठिन था।

ADVERTISEMENT

इस दौरान वह कहते हैं कि मेरे पिताजी एक छोटे किसान थे और उनके ऊपर हम छह भाई-बहनों की जिम्मेदारी थी, हालांकि आर्थिक स्थिति अच्छी होने के कारण उतनी अधिक पढ़ाई नहीं कर पाते थे ।

मैं पढ़ाई करने में काफी अच्छा था और गांव के दूसरे घरों में जिस प्रकार पढ़ाई का माहौल बना हुआ रहता था उस प्रकार हमारे घरों में पढ़ाई को लेकर एक अच्छा मोहल नहीं स्थापित था, परंतु इसके बावजूद मैंने प्राइमरी स्कूल हाई स्कूल और आगे चलकर कॉलेज में टॉप किया था।

लाल बहार आगे चलकर कहते हैं कि वह कहते हैं कि हम गांव में रहकर बड़े सपने नहीं देखते हैं मैंने भी छोटे ही सपने देखे थे मैं यह सोचता था कि मैं एक छोटे पद पर टीचर या फिर पुलिस की नौकरी करूंगा परंतु अगर उस वक्त मैं किसे बड़ी अफसर से मिला होता तो आज वह मेरी प्रेरणा होते और मैं भी आईपीएस ऑफिसर या फिर आईपीएस अधिकारी के पद पर नियुक्त होता।

इस दौरान लाल बहार कहते हैं कि आज वर्तमान में भी गांव में रहने वाले बच्चे पढ़ाई के सही माहौल से वंचित हैं , गांव के बच्चे ऐसे ही इस माहौल से काफी वंचित होकर पढ़ाई इतनी अधिक नहीं करते थे और लॉकडाउन में 2021 के समय मैंने यह देखा कि कॉलेज स्कूल और सभी कोचिंग सेंटर बंद होने के बाद बच्चों ने अपनी पढ़ाई पूरी तरीके से बंद कर दी है।

और वह कहते हैं कि यही वक्त था जब मैंने गांव में बच्चों को पढ़ाई के लिए एक अच्छा माहौल बनाने के लिए गांव के सरपंच से बात करके पुराने पंचायत भवन को एक लाइब्रेरी में बदलने का प्रस्ताव रखा, गांव के सरपंच ने प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया परंतु किसी भी प्रकार की आर्थिक रूप से मदद नहीं की।

इस कारणवश लाल बहार ने अपने गांव के दोस्त जो सरकारी नौकरी करते थे उन सभी ने पैसे मिलाकर लाइब्रेरी को खोलने का निश्चय किया।

इस दौरान वह कहते हैं कि हमने 2 महीनों में 5 लाख  रुपए तक पैसे इकट्ठा कर लिए थे , और इन पैसों से हमने सीसीटीवी जैसी सुविधाओं के साथ शहर में उपलब्ध एक स्टडी सेंटर की तरह ही गांव में बढ़िया स्टडी सेंटर तैयार कर दिया था।

लाल बहार आगे कहते हैं कि गांव के सभी लोग मुझे काफी अधिक प्यार करते थे और यही कारण था कि मैं अपने गांव के लिए कुछ अच्छा करना चाहता था, वह कहते हैं कि शुरू में इस लाइब्रेरी में 60 बच्चों की बैठने की व्यवस्था की गई थी परंतु धीरे-धीरे हमने यह देखा कि आसपास के गांव के भी बच्चे यहां आने लगे और भीड़ बढ़ती जा रही थी।

इस दौरान इस समस्या का हल करने के लिए उन्होंने गांव-गांव में घूमकर वहां के शिक्षित और सरकारी नौकरी करने वाले लोगों एवं पंचायत को गांव में लाइब्रेरी खोलने का प्रस्ताव रखा और वह मान गए।

इस तरीके से गांव-गांव में बात फैलती गई और कई गांव में इस प्रकार की लाइब्रेरी खुल चुकी थी इसके साथ ही साथ कई बच्चे हमें कॉल करके कहते थे कि भैया हमारे गांव में भी इस प्रकार की लाइब्रेरी खुलवा दीजिए।

‘लाल बहार’ कहते हैं कि मुझे पता ही नहीं चला कब अपने गांव में मैंने लाइब्रेरी खुलवाए और इस दौरान सभी गांव में घूम घूमकर लाइब्रेरी खुलवाने का प्रयास किया और आज यह प्रयास कब एक मुहिम में बदल गया और आज दिल्ली हरियाणा और गुड़गांव सहित कई गांव में 250 से अधिक लाइब्रेरी खुल गई है।

‘लाल बहार’ बताते हैं कि हाल ही में दिल्ली में गांव में मौजूद एक लाइब्रेरी से पढ़कर 12 बच्चों ने टीचर और पुलिस की भर्ती में नौकरी हासिल की है, इस दौरान वह कहते हैं कि मेरे ही गांव के बच्चे ने जेलर की नौकरी को पास किया है और कई बच्चे सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे हैं, हम अपनी लाइब्रेरी में स्थानीय अधिकारियों को भी बुलाते रहते हैं ताकि बच्चे इन से प्रेरणा ले सकें।

लाल बहार’ कहते हैं कि हमारा मिशन ग्राम पाठशाला 200 से 250 लाइब्रेरी खोलकर खत्म नहीं होने वाला है, हम भारत देश के हर एक गांव में एक लाइब्रेरी खुलवाना चाहते हैं, ताकि भारत का हर एक गांव विकास की ओर अग्रसर हो सके।

‘लाल बहार’ कहते हैं कि गांव में जितनी भी लाइब्रेरी खोली गई है सब स्टेशनरी तरह से चलती है यहां सभी किताबें डोनेट की गई हुई है, लाइब्रेरी में  सफाई की बात हो या फिर किताबों की जिम्मेदारी रखना इसका ख्याल गांव के बच्चे ही रखते।

वह कहते हैं यहां पर किसी भी बुक के लिए एंट्री नहीं होती है यह एक ऐसा माहौल है जहां बच्चे आकर पढ़ाई करते हैं और कई लोगों से प्रेरित होते हैं।

‘लाल बहार’ बताते हैं कि आज कई गांव में लाइब्रेरी के खुलने से बच्चों को पढ़ने का एक अच्छा माहौल मिल रहा है इसके साथ ही साथ बच्चे पढ़ाई में अपनी अधिक रूचि लगा रहे हैं और इसके साथ ही साथ खुद के विकास के लिए प्रेरित हो रहे हैं ताकि वे अपने भविष्य को उज्जवल कर सके और एक अच्छी नौकरी की प्राप्ति कर सके।

आज लाल बहार  की सोच और उसके द्वारा किया गया यह कार्य कई बच्चों का भविष्य उज्ज्वल बना रहा है और गांव में पढ़ाई के माहौल को सवार रहा है इसके कारण ही गांव के कई बच्चे अब उच्च स्तर पर नौकरी प्राप्त कर पा रहे हैं, अगर हर कोई गांव के बच्चों के लिए कुछ ऐसी ही सोच रखे तो आज गांव से निकलने वाले बच्चे भी कई ऊंचे मुकाम को प्राप्त कर सकते हैं।

लेखिका : अमरजीत कौर

यह भी पढ़ें :

आइए जानते हैं महाराष्ट्र में आने वाली बाढ़ में 300 से अधिक लोगों की जान बचाने वाले 25 वर्ष के युवा हीरो स

 

Similar Posts

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *