किसी भी क्षेत्र में अगर आप सफल हो जाते हैं तो आपको पूरी दुनिया जानती है। लेकिन लोग यह नहीं जानते हैं कि आपकी इस सफलता के पीछे आपने कितनी असफलता देखी है, कितना संघर्ष किया है और कितना समर्पण किया है।
किसी भी सफलता के मुकाम तक पहुंचने के लिए कई असफलता व संघर्ष के दौर से गुजरना पड़ता है। आज हम एक ऐसी कहानी लेकर आए हैं जो लोगों को अंदर से प्रेरित कर सकती है। जी हां, आज की हमारी कहानी है देश के सबसे बड़े होटलों में शुमार ओबरॉय होटल के संस्थापक की।
ओबरॉय होटल को देश के दूसरे सबसे बड़े होटल साम्राज्य के तौर पर जाना जाता है। इस होटल का साम्राज्य खड़ा करने के लिए इस कारोबारी ने अपनी मां से ₹25 प्राप्त किए थे।
मां के द्वारा मिले ₹25 से उन्होंने बिजनेस की शुरुआत की। आज की हमारी यह कहानी है ओबरॉय होटल एंड रिसॉर्ट के संस्थापक राय बहादुर मोहन सिंह ओबरॉय के बारे में।
मोहन सिंह ओबेरॉय :-
मोहन सिंह ओबरॉय ने रातों-रात सफलता नहीं हासिल की बल्कि इसके पीछे उन्होंने कड़ी मेहनत की। कई असफलताओं का सामना किया। तब जाकर आज वह सफलता के शिखर पर पहुंच पाए हैं।
आज उनकी गिनती भारतीय कारोबार जगत में दिग्गज के रूप में गिनी जाती है। शुरुआत में मोहन सिंह ओबरॉय ने कई असफलताओं का भी सामना किया है।
लोगों को यह जानकर हैरानी हो सकती है कि मोहन सिंह ओबरॉय ने भारत का पहला आधुनिक फाइव स्टार होटल शुरू किया था और इसकी शुरुआत उन्होंने अपनी मां के द्वारा मिली ₹25 से की थी।
जूते की फैक्ट्री से की काम की शुरुआत :-
मोहन सिंह ओबरॉय का जन्म अविभाज्य भारत में पाकिस्तान के जेलम जिले में स्थित एक सिख परिवार में हुआ था। मोहन सिंह ओबरॉय ने बचपन से ही काफी दुख झेले है।
जब वह 6 महीने के थे तभी उनके पिता की मृत्यु हो जाती है। जब थोड़ा बड़े होते हैं तो बीच में ही उन्हें अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ती है और लाहौर में स्थित एक जूते की फैक्ट्री में वह काम करने लगते हैं।
लेकिन साल भर के अंदर ही वह जूते की फैक्ट्री बंद हो जाती है। फैक्ट्री बंद होने के पीछे वजह यह थी कि 1918 में हुए अमृतसर के सांप्रदायिक दंगे में जूते की फैक्ट्री में आग लगा दी जाती है, जिसकी वजह से फैक्ट्री को बंद करना पड़ता है।
इसी बीच मोहन सिंह ओबरॉय की शादी हो जाती है। शादी के बाद वह अपने ससुराल में रहने लगते हैं और नौकरी ढूंढने लगते हैं।
काफी समय तक जो उन्हें नौकरी नहीं मिलती तो निराश होकर वापस वह मां के पास गांव जाते हैं। मोहन सिंह ओबरॉय की मां ने उन्हें ₹25 दिया और कहा कि जाकर काम ढूंढ लो।
शिमला के होटल में की क्लर्क की नौकरी :-
यह उस समय का दौर था जब कोरोना महामारी के जैसा ही हाल उस सदी में बना हुआ था। दुनिया भर में स्पेनिश प्लेस फैला हुआ था।
काफी मशक्कत करने के बाद मोहन सिंह ओबरॉय को शिमला के एक होटल में 1922 में क्लर्क की नौकरी मिल जाती है। विपरीत परिस्थितियों को झेल कर मोहन सिंह ओबरॉय चट्टान से हो गए थे। इसके बाद वह कभी मुड़कर नहीं देखा।

1934 की बात है। यह साल भारतीय होटल उद्योग के इतिहास में दर्ज हो गया। आने वाले समय में होटल इंडस्ट्री पर मोहन सिंह ओबरॉय छा गए और उनकी पहली प्रॉपर्टी द क्लार्क्स होटल को उन्होंने खरीद लिया था। इस होटल को खरीदने के लिए उन्होंने अपनी पत्नी के सारे गहने और अपनी सारी संपत्ति गिरवी रख दिए थे।
हैजा महामारी ने दिया मौका :-
सच ही कहा जाता है कि मेहनत कभी व्यर्थ नहीं जाती। मोहन सिंह ओबरॉय इस कहावत को सच साबित कर दिये। महज 5 साल के अंदर उन्होंने गिरवी रखी अपनी सारी संपत्ति और गहनों को छुड़ा लिया।
इसी बीच कोलकाता में हैजा फैल जाता है। महामारी के चलते हैं ग्रैंड होटल को बेचा जा रहा था। मोहन सिंह ओबरॉय ने 500 कमरे वाले इस होटल को उस समय लीज पर ले लिया था।
कई देशों में फैला है होटल साम्राज्य :-
मोहन सिंह ओबरॉय की लगन और अनुभव का नतीजा यह रहा कि होटल का बिजनेस चल गया। जल्दी कारोबार मे वह तरक्की करने लगे। भारतीय होटल व्यवसाय उनका दूसरा सबसे बड़ा साम्राज्य बनाने लगा। उनका होटल साम्राज आज भारत ही नहीं बल्कि कई अन्य देशों में भी फैला हुआ है।
आज ओबरॉय होटल एंड रिसॉर्ट की दुनिया भर में 123 लग्जरी होटल है जिसमें 12000 से भी अधिक कर्मचारी काम करते हैं ओबरा समूह का कुल कारोबार 7000 करोड़ से भी ज्यादा है आज मोहन सिंह ओबरॉय को भारतीय होटल उद्योग का जनक भी समझा जाता है
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