आइये जाने Rooh Afza कंपनी की सफलता की कहानी, इसने भारत की आजादी और 3 देशों का बंटवारा देखा

आइये जाने Rooh Afza कंपनी की सफलता की कहानी

आप मे से सभी ने कभी न कभी लाल रंग का शरबत जरूर पिया होगा। एक ऐसा सरबत है जो आत्मा को तृप्त कर के मन को सुकून देता है। जी हां, हम बात कर रहे हैं Rooh Afza की जिसकी पानी में कुछ बूंदे डालो और उसे मिला दो। बस बन जाता है लाल रंग का ताजगी से भरा मीठा शरबत।

आज हम जानेंगे Rooh Afza से जुड़ी कुछ बातें। जैसे कि क्या आप जानते हैं कि यह शरबत पाकिस्तान से आया है और कैसे भारतीयों के दिलों में अपनी जगह बना लिया।

रूह अफजा ( Rooh Afza) का परिचय

रूह अफजा शरबत जड़ी बूटियों, फलो, फूलों, सब्जियों और पौधों की जड़ों से बनाया जाता है। इसमें खुरपा के बीज, पुदीना, अंगूर का रस, तरबूज, संतरा, खसखस, धनिया, पालक, कमल, आदि की वजह से प्राकृतिक तत्वों को मिलाया जाता है और जामदनी गुलाब को मिला कर के लिए एक लाल रंग का टॉनिक बनाते हैं। इस टॉनिक को शरबत के रूप में काफी लोकप्रियता प्राप्त है।

काफी समय पहले एक पुराने अखबार के विज्ञापन में कहा जाता था कि जब मोटर कार का दौर शुरू हुआ और घोड़ा गाड़ी का दौर खत्म हो रहा था तो Rooh Afza आया था।

1907 में एक यूनानी चिकित्सक हकीम अब्दुल मजीद ने Rooh Afza का आविष्कार पुरानी  दिल्ली की गलियों में हमदर्द नाम की एक छोटी सी दवा की दुकान पर रूप में किया था और रूह अफजा नाम दिया था।

बाद में यह घर घर में काफी लोकप्रिय हो गया। आप लाल रंग की इस Rooh Afza शरबत को एक गिलास ठंडे दूध में, या सादे पानी में मिलाकर बना सकते है।

यह शहर की चिलचिलाती गर्मी हो या राजस्थान की भीषण गर्मी इसको पीने से ठंडक और ताजगी का एहसास होता है। इस Rooh Afza को पहले शराब की बोतल में पैक किया जाता था।

लेकिन कलाकार मिर्जा नूर अहमद ने बोतल का लेवल डिजाइन किया और इसे पहली बार मुंबई के बोल्टन प्रेस में प्रिंट किया गया था।

40 साल तक यह सफलता की ऊंचाइयों को छूता रहा और अफगानिस्तान तक में इसकी बिक्री की गई। उसके बाद जब भारत का विभाजन हुआ तब थोड़ी सी इसकी बिक्री में काम  कमी देखने को मिली।

2017 में अपनी पुस्तक The Ministry of Utmost Happiness में मशहूर लेखिका अरुंधति राय ने लिखा है कि भारत और पाकिस्तान की सीमा ने नफरत की वजह से लाखों लोगों की जान गई, पड़ोसी एक दूसरे को ऐसे भुला दिए जैसे कभी वह दूसरे को जानते तक नहीं थे और कभी एक दूसरे की शादियों में न शामिल हुए न ही कभी एक दूसरे के गाने गए।

शहरों की दीवारें तोड़ दी है। पुराने मुस्लिम परिवार बाहर चले गए और नए हिन्दू लोग आ गए। शहर की दीवारों के चारों तरफ फिर से बस गए। इससे Rooh Afza को बड़ा झटका लगा था लेकिन जल्दी यह संभाल गया।

पाकिस्तान में इसकी एक नई शाखा खोल दी गई। 25 साल बाद पूर्वी पाकिस्तान के विभाजन से एक देश बांग्लादेश के रूप में बना और वहां पर भी इसकी एक शाखा खोली गई।

भारत और पाकिस्तान में फिर से हमदर्द शुरू किया गया। भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के दौरान दोनों देशों के अलगाव की कहानियां आम हो चुकी थी। इससे अब्दुल मजीद का परिवार भी प्रभावित हुआ था।

सफरनामा

1922 में अब्दुल मजीद के निधन के बाद उनके 14 वर्षीय बेटे अब्दुल हमीद ने इस बिजनेस को और उसे ऊंचाइयों पर ले गए। पर विभाजन की वजह से इस कंपनी को ही नही बल्कि इस परिवार को भी काफी झटका लगा।

हजारों परिवार की तरह ही हामिद का परिवार भी बिखरा। अब्दुल और उनके भाई सैद अलगाव का शिकार हुए।

विभाजन की वजह से सैद अपनी मैन्युफैक्चरिंग प्लांट और ऑफिस को बांग्लादेश में अपने कुछ कर्मचारियों के भरोसे छोड़ दिया और पाकिस्तान चले गए और वहां पर जाकर नए सिरे से कंपनी की शुरुआत की।

हमदर्द एक स्थानीय दवा निर्माता से Rooh Afza कंपनी और फिर 1953 में Waqf नाम के एक राष्ट्रीय कल्याण संगठन के रूप में उभरा। अभी हाल में ही रूह अफजा को पाकिस्तान भारत और बांग्लादेश में Hamdard Waqf Laboratories द्वारा बनाया जा रहा है।

इस दौरान इसने कई युद्ध भी झेले हैं। इसमें 3 देशों का खूनी खेल देखा और विदेशी  कंपनियों के साथ ही घरेलू कंपनियों की चुनौतियों का डटकर सामना किया।

लेकिन इतने सालों बाद भी यह सुर्ख लाल रंग का यह मीठा पानी आज भी लोगों के बीच में लोकप्रिय है। रमजान के महीने में लोग इसे अधिक पीना पसंद करते हैं।

S. Sultan, Rooh Afza से जुड़ी एक बात को शेयर करते हुए कहती हैं कि एक परंपरा सी बन गई है कि रमजान के दौरान घर में दादी और मां रोशन करती हैं, इसकी ताजगी, व भरोसा ही नहीं बल्कि हम इसे एक नेचुरल ड्रिंक के तौर पर भी लेते हैं। सालों का भरोसा है साथी बचपन से जुड़े कई यादें भी हैं। इसलिए यह लाल रंग का रसीला शरबत बहुत कीमती है।

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