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Radhika Behara ki success story

आइए जानते हैं, किस प्रकार गांव की एक लड़की ने सभी बाधाओं को पार करके हासिल की जर्मन मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी

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आज हम बात करने वाले हैं राधिका बेहरा के बारे में , राधिका जब महज 4 वर्ष की थी तब उन्हें उड़ीसा के गजपति जिले के गांव जरदा के छात्रावास में पढ़ने के लिए भेजा गया था

उस वक्त 4 वर्ष की राधिका ने अपने मन में यह ठान लिया था कि वह अपने गांव की सभी औरतों के विपरीत काफी अधिक पढ़ाई करेंगी और आगे बढ़ कर दुनिया में अपना एक नया रास्ता बनाएंगे महत्वपूर्ण बात यह है कि बचपन से ही राधिका पढ़ने में काफी गहरी रुचि रखती थी।

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हालांकि राधिका का सपना उस वक्त समाप्त होते नजर आया जब उनके परिवार वालों ने शिक्षा छोड़ने और कक्षा आठवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद घर वापस आने को कहा उनके परिवार वालों का कहना था कि तुम्हें भी अपनी बड़ी बहन की तरह शादी करके अपना घर बसाना होगा।

इस दौरान राधिका बताती है कि मेरे पिता एक किसान हैं और हम गरीबी से ही पले बढ़े हैं मेरे पिता ने मुझसे कहा कि अब मैं तुम्हारी पढ़ाई का खर्च नहीं उठा सकता अन्यथा जब तुम एक लड़की हो तो तुम्हें अब शादी कर लेनी चाहिए।

हालांकि इस दौरान राधिका की बहन कौशल्या ने राधिका का पूरा समर्थन किया। राधिका बताती है कि मेरी बहन माता पिता के कहने पर हमेशा से चलती रही और उसने शादी कर ली और आज 22 वर्ष की उम्र में उसके तीन बच्चे हैं।

भले ही मेरी बहन पढ़ाई नहीं कर पाई परंतु वह चाहती है कि मैं आगे पढ़ाई करके कामयाबी हासिल करूँ अन्यथा उसने मुझे यह भी कहा कि अगर कोई तुम्हारा विरोध करता है तो मैं तुम्हारे साथ हूं।

कुछ समय बाद राधिका के परिवार वाले उसकी आगे की पढ़ाई के लिए मान गए और हाई स्कूल की पढ़ाई को पूरी करने के लिए बेहरामपुर के छात्रावास में पढ़ने की अनुमति दे दी, इस दौरान राधिका ने अपनी पढ़ाई में उत्कृष्ट प्रदर्शन जारी रखा।

इस दौरान हाई स्कूल के एक शिक्षक संतोष महापात्रा ने देखा कि राधिका एक गांव से होते हुए भी अपनी पढ़ाई काफी उत्कृष्ट और मन लगाकर करती है इस दौरान उसने राधिका को आगे बढ़ने के लिए काफी अधिक प्रोत्साहन दिया था।

एक बार फिर से परिवार वालों ने राधिका को घर आने के लिए दबाव डाला उस वक्त राधिका ने अपनी दसवीं की परीक्षा को पास कर लिया था।

इस दौरान राधिका ने अपने घरवालों से कहा कि वह एक इलेक्ट्रिशियन बनने के लिए प्रशिक्षण लेना चाहती हैं, और बहरामपुर के औद्योगिक प्रशिक्षण संस्था में जाना चाहती हैं, परंतु घर वालों ने मना कर दिया था ।

इतना ही नहीं गांव वालों ने तो यह भी कहा कि काम करना लड़कियों का काम नहीं है इसके साथ ही साथ पुरुषों के साथ प्रशिक्षण लेना और काम करना सही नहीं है, हालांकि इस दौरान राधिका के संतोष सर ने उनके परिवार वालों और गांव वालों को मना लिया, इसके साथ ही साथ राधिका की पढ़ाई की शिक्षा की लागत एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय थी।

इस दौरान राधिका बताती है कि संतोष सर ने मुझे ओडिशा सरकार की सुदाख्या योजना के बारे में बताया जो उन लड़कियों के लिए थी जो तकनीकी क्षेत्र में शिक्षा प्राप्त करना चाहती थी।

इस दौरान मैंने छात्रवृत्ति के लिए आवेदन किया और मुझे छात्रवृत्ति प्राप्त हुई इस दौरान मैंने छात्रवृत्ति का पूरा उपयोग छात्रावास के शुल्क के रूप में किया इस दौरान मासिक 1500  रूप से भी मिलते हैं इस दौरान शिक्षित भत्ता भी दिया जाता था।

राधिका बताती है कि मैंने पूरी पढ़ाई पूरी कर ली और उस दौरान घर वालों से यह पूछने का समर्थन जुटाया कि मैं कटक की इलेक्ट्रीशियन कंपनी में नौकरी के लिए आवेदन कर सकती हूं इस दौरान घरवालों ने मंजूरी दे दी परंतु आवेदन करने के बाद कंपनी से किसी भी प्रकार का पत्र नहीं आया मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैं हार चुकी हूं।

परंतु इसके कुछ दिनों बाद ही IIT के एक शिक्षक का फोन आया और उन्होंने बताया कि जर्मन मल्टीनेशनल कंपनी फ्रायडेनबर्ग (Freudenberg) अपने चेन्नई के कार्यालय के लिए लोगों को हायर कर रही है, और इस कंपनी ने मेरी साक्षरता को मंजूरी दे दी है।

परंतु राधिका इस बात से चिंतित थी कि अब परिवार वालों को किस प्रकार मनाया जाए कि वे इतनी दूर जाने वाली है इस दौरान राधिका के माता-पिता काफी चिंतित हो रहे थे परंतु अन्यथा कुछ समय बाद वह भी मान गए।

आज 21 वर्ष की राधिका बेहरा जर्मन मल्टीनेशनल कंपनी फ्रायडेनबर्ग मैं 1 साल से काम कर रही है और अब एक स्थाई कर्मचारी बनने की उम्मीद है।

अंत में राधिका कहती है कि चेन्नई जैसे शहर में अकेले रहना आसान तो नहीं है परंतु फिर भी आज अपने पढ़ाई के बल पर मैं अपनी मर्जी की जिंदगी जी रही हूं और अपने पैरों पर खड़ी हूं, और भी लड़कियों को इस बात से प्रोत्साहन देना चाहती हैं कि पढ़ाई करके घर मत बैठिए नौकरी करने के बारे में सोचें और अपने पैरों पर खड़े होकर रहिए।

लेखिका : अमरजीत कौर

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