जहाँ मोबाइल और टीवी पर थी रोक, उसी समाज की जुलेखा बानो वकील बन कायम की लोगो के लिये मिसाल

जुलेखा बानो वकील बन कायम की लोगो के लिये मिसाल

लद्दाख के वोंगदंग गांव की रहने वाली 24 वर्षीय Zulikha Bano Balti  अपने गाँव के लोगों के सामने एक मिसाल कायम की। अभी हाल में ही उन्होंने अपनी वकालत की पढ़ाई पूरी कर ली। Balti community की वह पहली महिला हैं जिन्होंने वकालत की पढ़ाई पूरी की है। इस बात को जानकर उन्हें खुद पर गर्व हैं।

वास्तव में Zulikha Bano उन सारी महिलाओं के लिए एक प्रेरणा है। जुलेखा देहरादून स्थित लेबर लॉ कॉलेज ऑफ लॉ से 5 वर्षीय एलएलबी की पढ़ाई पूरी की है।

उन्होंने बताया कि शुरुआत में मुझे नही मालूम था कि मैं अपने समुदाय में लॉ की पढ़ाई करने वाली पहली महिला हूं। अंतिम साल का जब आया नतीजा आया तब सोशल मीडिया पर उन्हें बधाई संदेश मिलने शुरू हो गए।

इस खबर में उन्हें एक बात से हैरानी भी थी और खुशी हुई थी। Zulikha Bano अपनी इस उपलब्धि का श्रेय अपने माता-पिता को देती है। जिन्होंने उन्हें तालीम दी।

मालूम हो कि यह गांव Zulikha Bano के माता-पिता का पहले बहिष्कार कर दिया था। लेकिन जब जुलेखा ने एलएलबी की डिग्री पूरी कर ली तो सब ने सब कुछ भुला कर उन्हें बधाई संदेश देना शुरू कर दिया।

बाल्टी समुदाय कौन है  ( Who Is Balti Community ):-

बाल्टी समुदाय कौन है, जिसका Zulikha Bano एक हिस्सा है? तो बता दें कि भारत के उत्तरी भाग जो कारगिल के क्षेत्र रहने वाला समुदाय है। उसे बाल्टी समुदाय के नाम से जाना जाता है।

इनकी एक विशिष्ट भाषा और संस्कृति है और इनका धर्म इस्लाम है। विभाजन के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा कई बदली गई है जिसका सबसे ज्यादा असर Balti Community के लोगों पर पड़ा है।

1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद तुरतुक, थांग, चुलुंका जैसे नुब्रा घाटी के कई गांवों को पाकिस्तान के कब्जे से आजाद करके भारत में शामिल कर दिया गया।

Zulikha Bano with family members
Zulikha Bano with family members

इसके बाद इन गांव में रहने वाले बाल्टी समुदाय पर लोगों की जिंदगी में स्थिरता गई। Zulikha Bano और उनके भाई बहन बोग्दग के रहने वाले हैं।

यह भारत में 1948 से बसे हैं। Zulikha Bano ने चौथी कक्षा तक की अपनी पढ़ाई वहीं पर स्थित आर्मी गुडविल स्कूल में की थी। इस स्कूल की स्थापना लेफ्टिनेंट जनरल अर्जुन रे ने की थी।

अर्जुन रे 14 कोर के पूर्व कमांडर थे और ऑपरेशन सद्भाव (Operation Goodwill ) की शुरुआत की थी। ऑपरेशन सद्भाव के तहत ही उन्होंने आर्मी गुड़हल स्कूल की स्थापना की थी।

दहशतगर्दी के खौफ के कारण लोग अपने बच्चों को यहां नही भेजना चाहते थे। ऐसे में नंबरदार अहमदशाह ने अपनी दो बेटियों और बेटे को इस स्कूल में पढ़ने के लिए भेजा।

अहमद शाह एक छोटे ठेकेदार थे। वह सेना को मजदूरी की जरूरतों को पूरा करते थे। साल 2000 में उन्हें गांव का नंबरदार बनाया गया था।

उस वक्त टीवी देखने, मोबाइल टावर लगाने यहां तक कि पर्यटकों को आने की अनुमति भी नही थी। लड़कियों की शिक्षा नही दी जाती थी। उन्हें 8 स्थानीय मालवीय द्वारा आठवीं कक्षा तक पढ़ा दिया जाता था।

Zulikha Bano की पिता बताते हैं कि गांव के सभी लोग अपने बच्चों को पढ़ाने में सक्षम नही थे। सामाजिक बंधन काफी ज्यादा थे। उन्होंने बचपन से देखा था कि लड़कियों को स्कूल भेजने को लेकर वहाँ विचार ही नही किया जाता।

1971 में पाकिस्तान से आजाद होने के बाद इन गांवों में आधुनिक शिक्षा को लेकर विचार बदले थे। आज उनके गांव की स्थिति में काफी सुधार हुआ है।

Zulikha Bano की पिता पारिवारिक मजबूरियों के चलते आठवीं क्लास तक ही पढ़ पाए थे। पढ़ाई पूरी न कर पाने का मलाल उन्हें हमेशा रहा। इसलिए वह अपने बच्चों को आधुनिक शिक्षा देना चाहते थे।

ऑपरेशन सद्भावना ने उनके सपनों को आयाम दिया। उन्होंने अपने बच्चों का दाखिला आर्मी मॉडल स्कूल में कराया।

एक बार सांस्कृतिक कार्यक्रम के आयोजन में Zulikha Bano ने डांस किया और उसकी छोटी बहन ने गाना गाया जिसकी वजह से उनकी बिरादरी नाराज हो गई और उनके परिवार पर धर्म से भटकने का आरोप लगाया।

अहमद झुकने से इंकार कर दिए और गांव वालों ने उनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया। उनके आने जाने पर रोक लगा दी गई और उनसे वास्ता रखने वाले लोगों पर जुर्माना लगा दिया गया।

साल 2000 में उन्होंने अपना गांव छोड़ दिया और Zulikha Bano को आगे की पढ़ाई करने के लिए देहरादून भेज दिया।

अहमद ठेकेदारी का काम किया करते थे। साथ ही सामाजिक बहिष्कार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे। इस दौरान उन्होंने कई अधिकारियों प्रतिनिधियों और पत्रकारों से संपर्क किया। लेकिन कोई मदद नहीं पाई।

Zulikha Bano बताती है उनकी पढ़ाई के लिए उनके पिता ने अपनी जमीन बेची क्योकि वह अपनी बेटियों को उच्च शिक्षा देना चाहते थे।

नई शुरुआत (New Beginning ):-

लद्दाख के काफी छात्र देहरादून पढ़ाई करने के लिए आते थे। अहमदशाह ने इसे देखते हुए अपने कुछ दोस्तों के सुझाव पर Zulikha Bano को यहां पढ़ाने और हॉस्टल खोलने का फैसला किया।

ताकि घर ठीक-ठाक से चल सके। वह अपनी  पत्नी ने मिलकर 35 छात्रों के लिए एक हॉस्टल शुरू किया। Zulikha Bano व उसकी बहन भी यहां पर रहने लगी और पढ़ाई करने लगी।

साथ ही छात्रों के लिए खाना बनाने में अपनी मां की मदद भी कर दी थी। इस तरह से उनकी जिंदगी सर पर दौड़ने लगी।

Zulikha Bano उच्च शिक्षा प्राप्त की और अपने समुदाय की पहली महिला वकील बनी। जुलेखा की छोटी बहन बाल्टी समुदाय के गाने कैरियर बना लिया।

आज बाल्टी भाषा की पहचान बन गई है। उनका भाई सब शब्बीर भी अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर लिया है।

गांव से मिला सम्मान ( Received honor from the village ):-

अहमद और उनके परिवार को गांव वालों ने फिर से गले लगा लिया। जुलेखा की कामयाबी के बाद गांव के लोग खुशियां मना रहे हैं।

यही लोग, यही गांव वाले जो कभी उन्हें गांव छोड़ने पर मजबूर कर दिए थे आज उन्हें खुले दिल से अपना रहे हैं।

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गांव के एक शख्स जो दिल्ली में रहते हैं उन्होंने कहा कि पिछले एक दशक में लोगों की सोच में काफी बदलाव आया है और लड़कियों कॉलेज में पढ़ाई करने लगी है।

लोगों को लड़कियों की शिक्षा का महत्व पता चल गया है। हालांकि लद्दाख के बाहर भेजने में उन्हें आज भी वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है।

अहमद कहते हैं लोगों के डर से अगर वह अपनी बेटियों के लिए कोशिश न करते तो शायद आज यह बदलाव देखने को न मिलता। जुलेखा के लिए उनका गांव किसी जन्नत से कम नही है।

वह लद्दाख में वकालत करने के साथ-साथ अपने गांव में मानसिक और शारीरिक विकलांगता से जूझ रहे लोगों के लिए एक एनजीओ खोलना चाहती हैं। जिससे वह उनकी मदद कर सके।

प्रेरणा ( Inspiration From The Story ):

जुलेखा की कहानी से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि अगर हम कुछ अच्छा करते हैं तो कभी कभी हमें समाज से लड़ना पड़ता है। समाज के डर से हमें रुकना नही चाहिए बल्कि अपने फैसले पर कायम रहना चाहिए आगे बढ़ना ।

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