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राजस्थान के किसानों को जैविक खेती के जरिए आत्मनिर्भर बनाने वाले योगेश की सफलता की कहानी

राजस्थान के किसानों को जैविक खेती के जरिए आत्मनिर्भर बनाने वाले योगेश की सफलता को कहानी
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भारत में किसानों की दुर्दशा से हर कोई परिचित है। बदलते वक्त के साथ-साथ किसानी खेती के क्षेत्र में भी आधुनिक तकनीक के साथ-साथ नई पद्धतियों को अपनाने की आवश्यकता महसूस कर रहे हैं।

लेकिन ज्यादातर किसानों में आज भी जागरूकता की कमी देखने को मिलती है। यही कारण है कि आज भी किसानों की दुर्दशा हो रही है।

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ऐसे में हम सब की यह जिम्मेदारी है कि हम अपने आसपास के किसानों को जागरूक करें जिससे वो आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर सकें।

राजस्थान के योगेश जोशी अपनी जिम्मेदारी को अच्छी तरह से समझते हैं। उन्होंने राजस्थान के किसानों को मदद करने का बीड़ा उठा रखा है।

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आज वह 500 करोड़ के जैविक खेती का व्यवसाय कर रहे हैं। अपने इस व्यवसाय के जरिए वहां राजस्थान के हजारों किसानों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाए हैं।

योगेश की परिवार में ज्यादातर लोग सरकारी नौकरी में है। उनके पिता नगर पालिका में मुख्य अधिकारी के पद पर हैं। वह चाहते थे कि उनका बेटा एक सम्मानजनक डिग्री हासिल करके एक सुरक्षित नौकरी करें।

आज्ञाकारी पुत्र होने की वजह से योगेश जोशी ने अपने पिता की बात मानकर ऐसा ही किया। उन्होंने कृषि विज्ञान में डिग्री पूरी करने के बाद जैविक खेती में डिप्लोमा किया।

साल 2006 में योगेश जोशी ने ₹8000 की मासिक तनख्वाह पर नौकरी कर ली। यही से उनका कार्य शुरू हुआ। 4 साल तक काम करने के बाद उनका वेतन ₹12000 मासिक ही हो पाया।

जिससे योगेश निराश हो गए और उन्होंने 2010 में नौकरी छोड़कर जैविक खेती का खुद का व्यवसाय शुरू कर दिया।

लोगो का स्वास्थ्य बना प्रेरणा

योगेश बताते हैं कि जैविक खेती के क्षेत्र में कदम रखने के पीछे प्रमुख वजह लोगों में बढ़ता डायबिटीज, कैंसर जैसी बीमारियां थी।

वहीं बीमारियों से लोगों को सुरक्षित करना चाहते थे। पश्चिमी देशों में लोगों ने जैविक खेती करना शुरू कर दिया है।

वह जैविक फल और सब्जियों का सेवन कर रहे हैं। भारत में भी हाल के दिनों में जैविक खेती का प्रचलन शुरू हो गया है। हालांकि कोरोना वायरस महामारी के बाद अब लोग जैविक भोजन पर ज्यादा ध्यान देना शुरू कर दिए हैं।

योगेश का एकमात्र उद्देश्य जैविक खेती और उद्योग में किसानों की मदद करना था। इस योजना के तहत व किसानों को उचित दाम देकर जैविक फल और सब्जियां खरीद लेते हैं और उन्हें बड़ी-बड़ी कंपनियों को प्रीमियम कीमतों पर बेचते हैं।

इसी उद्देश्य के साथ उन्होंने 7 किसानों के साथ मिलकर जीरो से जैविक खेती की शुरुआत की थी। हालांकि उनके पास व्यावहारिक अनुभव की कमी थी।

योगेश खेतों में मिट्टी को पूरी तरह से रसायनों से मुक्त रखने के लिए पर्याप्त समय नही दिया यही वजह थी कि पहली फसल बेकार हुई।

वह बताते हैं कि खेतों में रासायनिक प्रयोग को काम कर कर उर्वरता को बढ़ाने की दशा में औसत करीब 3 साल की आवश्यकता होती है।

उन्होंने इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया। जिस वजह से असफलता का सामना करना पड़ा। जिसकी वजह से कई किसानों का विश्वास उठ गया।

लेकिन योगेश अपने इरादे पर मौजूद थे। उन्होंने गलतियां की और उससे सीखा। उन्होंने जैविक उत्पाद बनाने के सही तरीकों के बारे में पता लगाएं। 10 साल बाद अपने घर और दृढ़ संकल्प के साथ उन्होंने सफलता का स्वाद चखा।

इस प्रोजेक्ट में निवेश करने के लिए उनके पास बहुत पैसा नहीं था। तब उन्होंने अपने दोस्तों से मदद मांगी और करीब एक दशक में 5 लाख निवेश करने के लिए इकट्ठा किये।

जल्द ही योगेश भारत और विदेश में किसानों को शहरी लोगो तक अपनी फसल को बेचने की वजह से समाचार प्लेटफार्म में पर सुर्खियों में आ गए।

जिन लोगों को उनके इस महान काम के बारे में पता चला तो किसानों से समझने लगे। योगेश बताते हैं कि शुरू में मेरे पिता मेरे इस व्यवसाय से निराश थे।

लेकिन जब एक बार आर्डर आने लगे तब उन्हें उनके काम में रुचि आने लगी और बड़े स्तर पर काम करने के लिए उन्होंने काफी मदद की।

योगेश का 10 साल पहले शुरू हुआ एक साधारण सफर आज एक बड़े संगठन का रूप धारण कर दिया है। योगेश की कंपनी रैपिड ऑर्गेनिक आज 3000 किसानों को बीज प्रौद्योगिकी जैविक उर्वरक और अन्य जानकारी प्रदान करती है।

जिससे वह किसानों को जैविक उत्पाद उगाने में मदद रहे हैं। यहां तक कि वह लोगों को ऋण भी देते हैं साथ ही वित्तीय समस्या वाले किसानों को कंपनी उचित दाम पर उनसे फसल भी खरीदती है।

वर्तमान समय में उनकी कंपनी किसानों से 2 से 3 हजार टन तक जैविक फसल खरीदती है और इससे भारत समेत विदेशों में बेच रही है। जिसमें प्रमुख रुप से संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, यूरोप के कई अन्य शामिल हैं।

आज योगेश की कंपनी में 50 से भी अधिक कर्मचारी हैं और उनका कारोबार 50 करोड़ से भी ज्यादा है। उनकी कंपनी में उनकी पत्नी भी एक सहायक निदेशक के रूप में काम करती है।

महिला किसानों के साथ काम करने की पहल के लिए कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी ने महिला और उद्यमिता के लिए उन्हें पुरस्कृत भी किया है।

जैविक खेती के क्षेत्र में काम करने वाले उद्यमियों के लिए योगेश सफलता मंत्र यह है कि किसी भी पेशे में 1000 दिन की कड़ी मेहनत निश्चित रूप से आने वाले समय में सफलता दिलाएगी। इसलिए तुरंत सफलता भले नहीं मिलती लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि उन्हें एक से दूसरे पेशे में कूदते रहना चाहिए।

योगेश की कहानी वाकई में प्रेरणादायक है। विशेष करके उन लोगों के लिए यह एक मिसाल है जो जैविक खेती को अपना रहे हैं।

उन्होंने अपनी सफलता से यह साबित कर दिया है कि दृढ़ इच्छाशक्ति और कुछ कर गुजरने की चाहत से आज इस दुनिया में कोई भी चीज़ नामुमकिन नहीं है।

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