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मुजफ्फरनगर की शालू , जो अपने जज्बे से अब तक 500 लावारिस लाशों का कर चुकी है अंतिम संस्कार

Social Activist Shalu Saini ki kahani
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आज हम आपको मुजफ्फरनगर की सामाजिक कार्यकर्ता शालू सैनी के बारे में , जिसने लगभग 15 साल से अपने बारे में ना सोचते हुए दूसरे लोगों के जीवन की परेशानियां के बारे में सोचते हुए कार्य किया है।

जानकारी के लिए आप सभी को बता दें कि सामाजिक कार्यकर्ता शालू सैनी ने करोना काल के समय में लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करना शुरू किया था और अब तक किया है 500 से अधिक लावारिस लाशों का परिवार बन कर उनका अंतिम क्रिया कर चुकी है ।

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37 वर्षीय शालू सैनी का नाम आज मुजफ्फरनगर शहर में सभी पुलिस स्टेशन और बड़े अधिकारियों के बीच में काफी अधिक लोकप्रिय है । वैसे तो हम जानकारी के लिए आप सभी को बता दें कि शालू सैनी लगभग 15 साल से समाज कार्यकर्ता के रूप में समाज सेवा से जुड़ी हुई है अर्थात यह समय-समय पर महिलाओं के हित के लिए अर्थात उन्हें आत्मनिर्भर और उनकी सुरक्षा के लिए कैंप भी लगाती हैं ।

केवल इतना ही नहीं शालू सैनी वेलफेयर ट्रस्ट नाम से एक एनजीओ भी चलाती है , परंतु यह बात जाननी आपको काफी आवश्यक है कि उनके काम को लोकप्रियता उस वक्त मिली जब उन्होंने करोना काल के समय में लावारिस लाशों को अपना परिवार समझकर उनका अंतिम संस्कार करना शुरू किया था ।

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बातचीत के दौरान शालू बताती है कि करुणा काल के समय में यह कार्य करना उस वक्त यह बात अलग थी परंतु आज हर दिन उन्हें किसी ना किसी मृत लाश के वह भी लावारिस के बारे में जानकारी मिलती रहती है इसलिए वह अपने हर दिन के इस कार्य को उन्होंने अपना जीवन का लक्ष्य बना लिया है ।

जानकारी के लिए आप सभी को बता दें कि अब तक शालू सैनी ने वर्ष 2020 तक लगभग 500 लावारिस लाशों को अपना परिवार समझकर उनका अंतिम संस्कार किया है।

शालू सैनी का मानना है कि लावारिस लाशों का खर्च कोई नहीं उठाता उन्हें यूं ही छोड़ देता है परंतु अगर हम उन्हें अपना परिवार समझकर उनकी अंतिम क्रिया कर दे तो भगवान से हमें पुण्य प्राप्त होगा अर्थात केवल इतना ही नहीं सालों के इस कार्य के लिए उनका नाम इंडिया  बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज किया गया है ।

जीवन की कठिन परिस्थितियों ने सिखाया उन्हें समाज सेवा से जुड़ना

जानकारी के लिए आप सभी को बता देंगे शालू सैनी मूल रूप से  गढ़ मुक्तेश्वर उत्तर प्रदेश की रहने वाली है परंतु उनकी शादी मुजफ्फरनगर में हो गई उसके बाद वह यही बस गई परंतु इनकी निजी जिंदगी इतनी बेहतर नहीं थी इसी कारणवश वह अपने पति से अलग हो गई थी ।

अर्थात इसके बाद उन्होंने अपने जीवन में संघर्ष करके अपने दोनों बच्चों का पालन पोषण किया अर्थात इस दौरान उन्हें यह तो मिल गई कि जिस प्रकार उन्होंने संघर्ष करके अपने बच्चों को पाला पोसा है इस प्रकार और कोई महिला को जीवन में संघर्ष ना करना पड़े इसलिए वह समाज सेवा से जुड़ गई थी ।

इसके लिए शालू सैनी ने सबसे पहले साक्षी वेलफेयर नाम से एक ट्रस्ट को रजिस्टर्ड किया इसके बाद यहां पर कार्य करना शुरू किया इस दौरान कई लोग उनसे मदद मांगने आते थे अर्थात् वे बताती हैं कि करोना काल में मदद मांगने वालों की संख्या काफी अधिक बढ़ रही थी।

और इस वक्त सबसे अधिक खबर लावारिस लाशों की आ रही थी जो कि यूं ही सड़क पर पड़ी थी नजर आ रही थी इस दौरान शालू सैनी ने लावारिस लाशों को अपना परिवार समझकर उनका अंतिम संस्कार किया ।

इस दौरान वह बताती हैं कि आप जितने भी बड़े-बड़े कार्य कर लें परंतु मन में इंसानियत हमेशा होनी चाहिए , क्योंकि अपने कर्म के द्वारा लोग कई निशाने दे देते हैं परंतु इंसानियत की मिसाल काफी कम लोग ही दे पाते हैं ।

 

लेखिका : अमरजीत कौर

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